🌿 परिचय
नर्मदा माता की परिक्रमा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि यह जीवन के द्वैत का प्रतीक है।
नर्मदा का उत्तर तट और दक्षिण तट दो मार्ग हैं— जो संसार और साधना, स्थूल और सूक्ष्म, कर्म और भक्ति के दो पहलू माने जाते हैं।
हर यात्री के लिए यह जानना आवश्यक है कि इन दोनों तटों का रहस्य क्या है और यह यात्रा किस दिशा में आत्मा को ले जाती है।
🌊 नर्मदा परिक्रमा की दिशा — दक्षिणावर्त का गूढ़ अर्थ
नर्मदा परिक्रमा हमेशा दक्षिणावर्त (Right to Left) दिशा में की जाती है।
अर्थात् परिक्रमा करने वाला यात्री नदी को हमेशा अपने दाएँ हाथ की ओर रखता है।
यह दिशा सूर्य की गति और शक्ति की साधना का प्रतीक है — जहाँ साधक धीरे-धीरे अहंकार को पीछे छोड़कर आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है।
यह परिक्रमा कोई त्वरित यात्रा नहीं — यह वर्षों की साधना है, जिसमें हर कदम भक्ति का संकल्प बनता है।
🕉 उत्तर तट का आध्यात्मिक रहस्य
उत्तर तट को “ज्ञान का मार्ग” कहा गया है। यहाँ तीर्थ, आश्रम और गुरुकुलों की अधिकता है।
यह भाग साधक को स्थिरता, संयम और आत्मविचार का पाठ सिखाता है।
उत्तर तट के घाटों पर साधना करने वाले संतों ने कहा है —
“उत्तर तट पर नर्मदा मौन में बोलती है।”
यहाँ हर लहर ध्यान की ध्वनि बन जाती है, और हर घाट साधक के मन का दर्पण।
🔱 दक्षिण तट का रहस्य — भक्ति और कर्म का मार्ग
दक्षिण तट “कर्म” और “भक्ति” दोनों का प्रतीक है।
यहाँ यात्रा कठिन है — पहाड़ी मार्ग, वन और निर्जन घाट।
परंतु इन्हीं कठिनाइयों में भक्ति का सच्चा अनुभव मिलता है।
दक्षिण तट पर चलना मानो अपने अहंकार से संघर्ष करना है, जहाँ अंततः साधक विनम्र होकर कहता है —
“हे नर्मदे! मैं नहीं, केवल तू ही है।”
🌺 परिक्रमा मार्ग में मिलने वाले प्रमुख स्थल
- ओंकारेश्वर से महेश्वर तक — भक्ति और तप की भूमि
- हंडिया से होशंगाबाद तक — नदी का कोमल सौंदर्य
- अमरकंटक से डिंडोरी तक — नर्मदा का उद्गम और ऊर्जा का स्रोत
- भरूच से गरुडेश्वर तक — जहाँ नर्मदा सागर से मिलती है
हर स्थल अपने आप में एक “ध्यान बिंदु” है — जहाँ आत्मा ठहरती है और शरीर चलता रहता है।
🪔 प्रतीकात्मक अर्थ
नर्मदा का उत्तर तट ज्ञान का प्रतीक है,
और दक्षिण तट भक्ति का।
जब साधक दोनों तटों की परिक्रमा पूरी करता है, तब वह भीतर की नर्मदा — यानी आत्मा — को प्राप्त करता है।
परिक्रमा इसलिए “पूर्ण” कहलाती है क्योंकि यह बाहर नहीं, भीतर संपन्न होती है।
🌿 निष्कर्ष
नर्मदा परिक्रमा का मार्ग केवल भूगोल नहीं — यह आत्मज्ञान का नक्शा है।
जो दक्षिण तट पर चलता है, वह भक्ति में घुलता है;
जो उत्तर तट पर लौटता है, वह ज्ञान में स्थिर होता है।
और जब दोनों मिलते हैं, तभी साधक कहता है —
“नर्मदे हर, नर्मदे हर।”