नर्मदा परिक्रमा की अनेक कथाएँ हैं कहा जाता है भगवान शंकर के तप से नर्मदा का उद्भव हुआ। पौराणिक ग्रंथों में इसका वर्णन है कि जो भक्त नर्मदा की परिक्रमा करता है, उसे अनेक जन्मों के पापों से मुक्ति मिलती है। नर्मदा तट पर स्थित ओंकारेश्वर, अमरकंटक, महेश्वर, और तिलकवाड़ा जैसे स्थान आध्यात्मिक ऊर्जाओं के केंद्र माने जाते हैं।
🌺 नर्मदा परिक्रमा की पौराणिक कथाएँ और महत्व
भारत की नदियों में नर्मदा नदी का स्थान अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक माना गया है। हिंदू धर्मग्रंथों में इसे “रेवा” नाम से भी पुकारा गया है। मान्यता है कि यह नदी स्वयं भगवान शंकर के आंसुओं से उत्पन्न हुई थी, इसलिए इसे शिवस्वरूपा कहा गया है। नर्मदा की परिक्रमा केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि यह एक आध्यात्मिक साधना है — आत्मा की शुद्धि और परमात्मा के साक्षात्कार का माध्यम।
🌿 नर्मदा परिक्रमा की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष बढ़ा, तब भगवान शिव ने संसार की संतुलन के लिए एक पवित्र नदी का सृजन किया। उनके तप से निकले अश्रु से नर्मदा का जन्म हुआ। कहा जाता है कि नर्मदा के जल को देखने मात्र से ही पाप नष्ट हो जाते हैं।
एक कथा में आता है कि नर्मदा और सोन नदी बहनों के रूप में जन्मीं। जब सोन को विवाह का निमंत्रण मिला और नर्मदा को नहीं, तो वह क्रोधित होकर पहाड़ों और जंगलों से होती हुई पश्चिम की ओर चल पड़ी। उसी समय से यह नदी कभी सीधी नहीं बहती — इसकी लहरदार धारा उसकी भावनाओं का प्रतीक मानी जाती है।
🕉️ परिक्रमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
नर्मदा परिक्रमा का अर्थ है — पूरी नर्मदा नदी के दोनों किनारों की पदयात्रा, जो लगभग 2600 किलोमीटर की होती है। यह यात्रा सामान्यतः तीन वर्ष, तीन महीने और तेरह दिन में पूरी की जाती है।
यह केवल शारीरिक यात्रा नहीं, बल्कि एक अंतर्मन की साधना है — जहाँ यात्री अपने भीतर की वासना, क्रोध, मोह, और अहंकार को त्यागकर स्वयं से साक्षात्कार करता है।
पुराणों में कहा गया है —
“गंगा स्नाने से, यमुना दान से, परंतु नर्मदा दर्शन मात्र से मोक्ष मिलता है।”
यही कारण है कि नर्मदा को मुक्तिदायिनी कहा गया है।
🌼 नर्मदा परिक्रमा की परंपरा और साधना
नर्मदा परिक्रमा करने वाले यात्रियों को “परिक्रमावासी” कहा जाता है। वे सादा वस्त्र धारण करते हैं, भिक्षा पर जीवन यापन करते हैं, और पूरी यात्रा पैदल करते हैं।
परिक्रमा शुरू करने से पहले यात्री नर्मदा के तट पर प्रणाम कर माता से आशीर्वाद लेते हैं। यात्रा का नियम है कि नदी को कभी पार नहीं किया जाता — केवल एक ही किनारे पर रहते हुए पूरी परिक्रमा पूरी की जाती है।
🌻 नर्मदा परिक्रमा का सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव
यह यात्रा मनुष्य को धैर्य, सेवा, त्याग और प्रेम की भावना सिखाती है। नर्मदा तट के गाँवों में परिक्रमावासियों का स्वागत करना एक परंपरा बन चुका है।
नर्मदा नदी न केवल भौतिक रूप से जीवन देती है, बल्कि मानसिक शांति और आत्मिक संतुलन का भी स्रोत है।
🌺 निष्कर्ष
नर्मदा परिक्रमा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह मानव जीवन की गहराई को समझने की एक साधना है।
नर्मदा माँ की कृपा से यह यात्रा साधक के जीवन में शांति, संतोष और मोक्ष का मार्ग खोल देती है।
नर्मदा नदी के प्रमुख तीर्थस्थलों से जुड़े सामान्य प्रश्न
1. नर्मदा नदी की परिक्रमा कब करनी चाहिए?
नर्मदा परिक्रमा शरद ऋतु (अक्टूबर से फरवरी) में करना सबसे शुभ और सुविधाजनक माना जाता है। इस समय मौसम सुहावना और यात्रा सुरक्षित रहती है।
2. नर्मदा परिक्रमा में कितने दिन लगते हैं?
पूर्ण परिक्रमा में लगभग 3,000 किलोमीटर का मार्ग होता है। पैदल यात्रा करने पर 6 महीने से 1 वर्ष तक लग सकता है, जबकि वाहन से यात्रा लगभग 25–30 दिनों में पूरी हो जाती है।
3. नर्मदा स्नान का धार्मिक महत्व क्या है?
शास्त्रों में कहा गया है — “गंगा स्नान पाप हरता है, नर्मदा दर्शन मोक्ष दाता है।” नर्मदा में स्नान आत्मशुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति का प्रतीक माना गया है।
4. क्या महिलाएँ नर्मदा परिक्रमा कर सकती हैं?
हाँ, बिल्कुल। महिलाएँ भी परिक्रमा कर सकती हैं, बशर्ते वे स्थानीय परंपराओं और सुरक्षा नियमों का पालन करें।
🌸 यात्रा सुझाव (Travel Tips)
- नर्मदा परिक्रमा से पहले स्थानीय परंपराओं और नियमों को समझें।
- हर घाट पर फोटोग्राफी से पहले अनुमति लेना उचित रहता है।
- हल्का सामान रखें — मुख्यतः वस्त्र, जरूरी दवाइयाँ, और पहचान पत्र।
- रात्रि विश्राम के लिए धर्मशालाएँ, आश्रम और घाटों के पास बने साधक आवास उपलब्ध हैं।
- नर्मदा तटों पर स्वच्छता और शांति बनाए रखें; नदी को जीवंत देवी मानकर आचरण करें।